लेखनी प्रतियोगिता -26-Mar-2022 - दादी का स्वेटर
दादी ने एक दिन बुना था स्वेटर,
ऊन को लाई थी पहले वो धोकर |
सलाईयों से डाले थे फंदे ,
नहीं लगाने दिए हमें हाथ गंदे |
नई नई बुनाई की डिजाइन ढूंढ रही थी ,
जैसे वो कुछ नया सा चुन रही थी |
कभी सोचती चैन की बुनाई डालेंगी,
कभी सोचें प्लेन बुनाई पर कढ़ाई करेंगी |
क्या चल रहा था दिमाग में उनके,
कोई पास न फटक रहा था जिनके |
हाथ किसी को लगाने नहीं देती ,
ऊन के गोली बना दो बस कहती थी |
जब बना स्वेटर का एक हिस्सा,
तब उन्होंने सुनाया हमें एक किस्सा |
कैसे दादी उनकी भी बनाती थी स्वेटर,
छुप जाती थी दादी हमारे कहीं जाकर |
हमें भी लगाकर उन्होंने स्वेटर को देखा ,
लगा उन्हें जब वह हमारे नाप का देखा |
फिर दूसरा हिस्सा उन्होंने बनाया,
बाजुओं पर फिर उन्होंने हाथ आजमाया |
अब आ गई गला बुनने की बारी ,
फंदो के जोड़ घटा की समस्या भारी |
तब कहीं पता चला हमें जाकर ,
पहली बार बना रही हैं स्वेटर अब आकर |
उससे पहले कभी न बनाया था ,
अब यूट्यूब से देख कर आजमाया था |
जैसे तैसे स्वेटर पूरा हुआ दादी का ,
बन ही गया वह जो अब तक अपवादी था |
अब जद्दोजहद शुरू हुई स्वेटर पहनने की ,
गले में ही नहीं आया आई बारी अब रोने की |
स्वेटर हमें लग रहा था प्यारा बड़ा ,
दादी ने मेहनत से बनाया था बड़ा |
मेहनत उनकी बर्बाद हो रही थी ,
स्वेटर की सिलाई उधड़ रही थी |
दादी ने अब है ठानी,
स्वेटर न अब वह बनाएंगी ,
ऊन सलाई को हाथ नहीं लगाएंगी ||
प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)
Shrishti pandey
28-Mar-2022 07:46 AM
Wah wah very nice
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Punam verma
27-Mar-2022 09:22 AM
Nice
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Swati chourasia
26-Mar-2022 08:13 PM
बहुत ही सुंदर रचना 👌
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